(2) पशुपालन सम्बन्धी विचार(Ideas About Animal Husbandry) कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में पशुपालन के सम्बन्ध में न केवल विभिन्न प्रकार की पशु नस्लों का उल्लेख किया है वरन् राज्य द्वारा भी पशुपालन की सलाह दी। सरकारी पशुओं को चराने वाले ग्वालों की मजदूरी का निर्धारण करने तथा पशुओं के खाने-पीने के प्रबन्ध में क्षति पहुँचाने वालों के विरुद्ध कार्यवाही हेतु कठोर कानूनों की व्यवस्था पर भी विचार रखे हैं।
(3) उद्योग सम्बन्धी विचार (Ideas About Industry)
कौटिल्य ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'अर्थशास्त्र में निजी तथा राजकीय उद्योगों का उल्लेख करने के साथ-साथ राज्य द्वारा उद्योग स्थापना एवं संचालन करने की नीति प्रतिपादित की। उद्योगों के बारे में कौटिल्य की आर्थिक नीति' की तीन प्रमुख बातें थीं
(1) अधिकतम उत्पादन; (2) अधिकतम राज्य आय; तथा (3) अधिकतम जनहित।
कौटिल्य ने उद्योगों को दो श्रेणियों में विभाजित किया और उनके संचालन सम्बन्धी नीति का उल्लेख इस प्रकार किया है
(1) बड़े उद्योगों के अन्तर्गत खानों, सागर खनिजों तथा नमक उद्योग को लिया गया और इन बड़े उद्योगों में राजकीय नियंत्रण के अन्तर्गत उत्पादन पर अधिक जोर दिया। कौटिल्य के अनुसार ''जिस खान में बहुत अधिक श्रम लगता हो और बहुत अधिक व्यवस्था करनी पड़ती हो उसे उत्पादन के एक निश्चित भाग अथवा एक निश्चित किराये पर उठा देनी चाहिये और जिन खानों पर व्यवस्था एवं व्यय कम हो उन्हें सरकार को स्वयं संचालित करना चाहिये।'' ।
कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में बताया है कि खानों पर स्वामित्व तीन प्रकार का था-
(i) सरकार द्वारा। खोदी जाने वाली खाने,
(ii) राज्य तथा व्यापारिक संस्थानों के द्वारा मिलकर खोदी जाने वाली खानें, तथा
(ii) निजी खानें ।
इन सभी प्रकार की खानों पर सरकार का ही स्वामित्व अन्तर्निहित था।
सागर खनिजों एवं नमक उद्योगों के बारे में कौटिल्य ने लिखा है कि सागर खनिजों के अधीक्षक (खन्याध्यक्ष) सरकार की ओर से प्रवाल (मँगा), मुक्ता, शंख, हीरा तथा अन्य प्रकार के बहुमूल्य रत्न
और अनेक प्रकार के नमक आदि इकट्ठा करने तथा इन सभी प्रकार की वस्तुओं के व्यापार पर नियंत्रण रखते थे।

कोटिल्य ने जहाँ एक और नमक पर राज्य के एकाधिकार की वकालत की वहाँ दूसरी ओर
की। कौटिल्य ने निर्धारित सीमा औद्योगिक उत्पादनों पर केन्द्रीय नियंत्रण की आवश्यकता प्रतिपादित क
1जों के क्रय-विक्रय अथवा निर्धारित मात्रा से उनके अधिक उत्पादन पर दण्ड के विधान से बाहर खनिजों के क्रय-विक्रय अथवा
म उद्योगों पर भी महत्त्वपूर्ण आर्थिक आवश्यकता पर बल दिया। | (2) लघु उद्योग-कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ अर्थशास्त्र में लघु उद्योग
सोने-चाँदी एवं बहुमूल्य धातुओं के चार दिये हैं। उसने पाँच प्रकार के अध्यक्षों का उल्लेख किया है-सा
ताँबे के सिक्के तैयार करने के लिये आभूषण तैयार करने के लिये ‘सुवर्णाध्यक्ष', सोने-चाँदी और
तथा माप-तौल के बाद और उनके मा ३, सूत एवं रस्सा तैयार करने वालों को 'सत्राध्यक्ष तथा माप-ताल के बाद और उनके मान
दालनाने वाले कारीगरों से शराब तैयार कराने वाले तैयार कराने वालों को 'पौतवाध्यक्ष तथा सुरा बनाने वाले कार ॥ | लघु उद्योगों में यद्यपि कछ वस्तओं पर राज्य के एकाधिकार की बात का उल्लेख है पर अधिक
स्वतंत्र व्यापारी मजदूरों एवं कारीगरों से वस्तुओं लघु उद्योगों पर निजी उद्यमियों का स्वामित्व एवं नियंत्रण था। स्वतंत्र व्यापारी
‘लक्षणाध्यक्ष, सूत एवं रस्सा तैयार करने वाले
‘सुराध्यक्ष । लघु उद्योगों में यद्यपि कुछ वस्तुओं पर
को बनवाते और बेचते थे।
(4) कौटिल्य के श्रम सम्बन्धी विचार
(Kautilya's Ideas About Labour) कौटिल्य के श्रम सम्बन्धी विचार भी आधुनिक विचारों से मेल खाते हैं। उसने श्रम को प्रतिष्ठा । दृष्टि से देखा तथा मजदुरी नियमों का प्रतिपादन किया जैसे बीमारी या विपत्ति के समय आकस्मिक अवकाश की व्यवस्था तथा एवजी के बजाय अवकाश का प्रावधान उल्लखना
कौटिल्य ने ‘अर्थशास्त्र में लिखा है कि जो लोग षड्यंत्र कर कारीगरों के काम का स्तर गिरायेंगे, उनकी आमदनी में बाधा पहुँचायेंगे अथवा उनके उत्पादनों की खरीद-बिक्री में रोड़े डालेंगे उन पर हजार पण का जुर्माना होगा।"
इसी प्रकार कौटिल्य के अनुसार मजदूरी के भुगतान में आपस में तयशुदा मजदूरी देनी होगी । मजदूरों को उसे स्वीकार करना होगा। मजदूरी का भुगतान न करने पर उसकी राशि का दस गुना अथवा छ: पण जुर्माना देना पड़ेगा। मजदूरी हजम कर जाने पर उस राशि का पाँच गुना अथवा 12 पण जर्माना देना होगा।
| राज्य कर्मचारी की काम करते हुए मृत्यु हो जाने पर उसके पुत्र अथवा पत्नी को उसके वेतनादि । दिये जाने का भी प्रावधान कौटिल्य के अर्थशास्त्र में है।
स्त्री श्रमिकों को अपने जीविकोपार्जन हेतु कार्य करने की दशा में उचित मजदूरी/वेतन दिये जाने के प्रावधान के साथ-साथ परदे में रहकर काम करने वाली महिला श्रमिकों, जिनके पति परदेश गये हैं, जो विकलांग या अविवाहित हों और अपना स्वयं का पेट भरने के लिये काम करें तो कार्याध्यक्ष को उनसे सूत । कतवाने का काम कराने तथा उनके साथ सत्कारपूर्ण व्यवहार का आदेश है।
कौटिल्य ने कहा है कि यदि राजा के कोष में कमी आ जाये तो राजा की सहायता देने योग्य लोग को पशु और जमीन के रूप में सहायता दी जानी चाहिये।
विशेष कारीगरी करने वाले कारीगरों को सामान्य से दुगुनी मजदूरी दी जानी चाहिये और अथक काम करने पर अधिक मजदूरी का भी विधान बताया।
कौटिल्य ने अनुबन्ध के अभाव वाली परिस्थिति में खेतीहर को उसकी फसल का, पशुपालक भी ची का तथा व्यापारी को उसकी बिक्री का दसवाँ भाग देने का विधान बताया है। दासों पर अत्याचा को रोकने की दृष्टि से भी कौटिल्य ने राज्य के नियंत्रण का उल्लेख ।
का उल्लेख किया है तथा बताया है कि दास में सम्पत्ति मालिक को प्राप्त होगी।
परान्त उसकी सम्पत्ति उसके परिवार वालों को मिलेगी तथा कोई उत्तराधिकारी न होने पर दास
विधान श्रमिकों
के कल्याण एवं मजदूरी भुगतान, श्रमिकों के शोषण के खि
क तथ्यों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि कौटिल्य ने अपने समय में जो विधान ।
हिला श्रमिकों को



Reviewed by Unknown on अगस्त 24, 2018 Rating: 5

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