अर्थशास्त्र अथवा आर्थिक सिद्धान्तों का व्यावसायिक प्रबन्ध/निर्णयों में उपयोग/महत्त्व
(Application of Economics or Economic Principles in
Business Management Decisions).
प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में व्यावसायिक फर्मों के कार्यों एवं घटनाओं के विश्लेषण तथा समस्याओं के समाधान के लिये अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों, धारणाओं एवं विश्लेषण की पद्धतियों का व्यापक प्रयोग किया जाता है। इसी कारण स्पेन्सर तथा सीगलमैन ने इसे 'आर्थिक सिद्धान्त का व्यावसायिक व्यवहार के साथ एकीकरण'' की संज्ञा दी है। अतः व्यावसायिक प्रबन्ध में अर्थशास्त्र अथवा आर्थिक सिद्धान्तों के प्रयोग के प्रमुख पहलू अग्रांकित हैं
1. व्यवसाय के आर्थिक सम्बन्धों की जानकारी-व्यावसायिक प्रबन्ध में अर्थशास्त्र के सिद्धान्त के प्रयोग से व्यवसाय के आर्थिक सम्बन्धों-जैसे लागत और उत्पादन का सम्बन्ध, मूल्य एवं मॉग का सम्बन्ध उत्पादन का मूल्य से सम्बन्ध, माँग की लोच का आय, मूल्य और स्थानापन्न वस्तुओं के मूल्य से सम्बन्ध लागत मूल्य एवं लाभ का सम्बन्ध आदि की जानकारी होने पर उचित निर्णयों में सुविधा रहती है।
2. व्यावसायिक भविष्यवाणी एवं पूर्वानुमान-अर्थशास्त्र के नियमों एवं सिद्धान्तों का उपयोग व्यावसायिक भविष्यवाणियों एवं पूर्वानुमानों में भी होता है। प्रत्येक व्यवसाय में अनिश्चितता रहती है, अतः प्रबन्धकों को पूर्वानुमान लगाना पड़ता है कि भावी मूल्य क्या होंगे? भावी विक्रय की सम्भावना क्या है? वस्तुओं की भावी लागत क्या होगी, भविष्य में लाभ की सम्भावना कैसी है? आर्थिक विश्लेषण के उपकरणों के प्रयोग से ही पूर्वानुमान एवं भविष्यवाणी सम्भव है जो कि व्यवसायों के प्रबन्ध में बहुत
3. आर्थिक लागतों एवं लेखा लागतों की धारणाओं में समन्वय -व्यावसायिक प्रबन्धकों के महत्त्वपूर्ण है। लिये आर्थिक लागतों की धारणाओं को बहीखाता व लेखा लागतों में अन्तर का समायोजन करना पड़ता है। लेखा लागते वास्तविक भुगतान की लागतों से सम्बन्धित हैं जबकि अर्थशास्त्र में लागत की धारणा वास्तविक भुगतान की अपेक्षा व्यापक है। जैसे व्यापारी दूसरे की दुकान या मकान को किराये पर लेता है तो लेखा| लागत में शामिल है, किन्तु अगर वह अपनी ही दुकान या मकान में व्यापार स्थान रखता है तो यद्यपि बहीखाता या लेखा-लागत नहीं चुकाना पड़ता, पर फिर भी अर्थशास्त्र की दृष्टि से यह लागत है। अतः व्यवसाय के प्रबन्धकीय निर्णयों में आर्थिक लागतों और लेखा-लागतों के बीच अन्तर का समायोजन करना पड़ता है तभी लागत और लाभ सम्बन्धी निर्णय सही बैठते हैं। यही नहीं, भावी नियोजन एवं निर्णय भी इन आर्थिक सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य में ही लिये जाते हैं।
4. व्यवसाय को प्रभावित करने वाली बाह्य परिस्थितियों का ज्ञान एवं प्रबन्धकीय निर्णयों में समायोजन-आर्थिक सिद्धान्तों के आधार पर ही व्यवसाय को प्रभावित करने वाली बाह्य शक्तियों एवं परिस्थितियों का अध्ययन कर व्यावसायिक प्रबन्धक इनके दुष्प्रभावों से बचने तथा सुप्रभावों का लाभ कमाने की दृष्टि से अपने निर्णयों में आवश्यक समायोजन करता है। उदाहरणार्थ मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति, विदेशी व्यापार नीति, व्यापार चक्र, रोजगार एवं राष्ट्रीय आय में परिवर्तन, श्रम नीतियाँ एवं सरकार की व्यापारिक नीतियाँ आदि व्यवसाय को प्रभावित करने वाली बाह्य परिस्थितियाँ हैं। इनको समझने तथा विश्लेषण करने में ही नहीं वरन् समयानुकूल नियोजन एवं निर्णय लेने में आर्थिक सिद्धान्तों का प्रयोग करना पड़ता है। व्यावसायिक प्रबन्धक इन बाह्य परिस्थितियों के आधार पर अपनी नीतियों में समायोजन करता है।
5. आर्थिक सिद्धान्तों के व्यावहारिक प्रयोग की सीमा स्पष्ट-आर्थिक सिद्धान्त तो अनेक काल्पनिक मान्यताओं एवं धारणाओं पर आधारित होते हैं जबकि व्यावसायिक प्रबन्ध वास्तविक परिस्थितियों और व्यावहारिकता पर आश्रित है। अत: यह स्पष्ट हो जाता है कि आर्थिक सिद्धान्त व्यवहार में कहाँ तक लागू होते हैं, जैसे-आर्थिक विश्लेषण में प्रत्येक उत्पादक या व्यवसायी का लाभ को अधिकतम करने का उद्देश्य होता है, किन्तु व्यवहार में यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक का उद्देश्य लाभ को अधिकतम करने का। ही हो, अपनी वस्तु को बाजार में लोकप्रिय करने का हो सकता है, जान-बूझकर कम मूल्य में घाटा उठाकर भी प्रतियोगिता का मुकाबला करने की धुन हो सकती है। आर्थिक सिद्धान्त में पूर्ण प्रतियोगिता की कल्पना है, पर व्यवहार में पूर्ण प्रतियोगिता दृष्टिगोचर नहीं होती।
6. आर्थिक सिद्धान्तों के प्रयोग से व्यवसाय संचालन में सुविधा-जब प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र के अन्तर्गत आर्थिक सिद्धान्तों के प्रयोग से विविध पूर्वानुमान लगाया जाता है अथवा आर्थिक मात्राओं की भविष्यवाणी की जाती है तो उनके आधार पर व्यावसायिक प्रबन्धक व्यवसाय के सफल संचालन के लिये उपलब्ध विकल्पों में से मितव्ययितापूर्ण विकल्प को चुनता है, मूल्य लागत तथा पूँजी सम्बन्धी निर्णय लेता है। जैसे-माँग के पूर्वानुमान के बाद तदानुरूप पूर्ति के लिये उत्पादन की योजना बनाने, कच्चा माल खरीदन, उत्पादन करने तथा वितरण की व्यवस्था आदि कार्यों का संचालन सुविधाजनक हो जाता है।
अर्थशास्त्र अथवा आर्थिक सिद्धान्तों का व्यावसायिक प्रबन्ध/निर्णयों में उपयोग/महत्त्व
Reviewed by Unknown
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अगस्त 24, 2018
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