व्यावसायिक अर्थशास्त्र अथवा प्रबन्धकीय
अर्थशास्त्र का अन्य विषयों (शास्त्रों) से सम्बन्ध
(Relation between Business Economics or
Managerial Economics and Other Subjects)
प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र ज्ञान की एक ऐसी नवोदित शाखा है जिसके विकास में अनेक विषयों का योगदान है। यह विशुद्ध आर्थिक सिद्धान्तों को फर्म के व्यावहारिक प्रयोगों का अजीब संयोग होने के कारण इसका व्यष्टि अर्थशास्त्र, गणित, सांख्यिकी, संक्रिया अनसंधान, लेखाशास्त्र एवं सार्वजनिक अर्थशास्त्र से घनिष्ट सम्बन्ध है जैसा निम्न विवरण में इसका संकेत मिलता है
1. प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र एवं व्यष्टि अर्थशास्त्र में सम्बन्ध (Relation between Micro Economics and Managerial Economics)-व्यष्टि अर्थशास्त्र जिसमें मल्य सिद्धान्त अथवा फर्म के तान्त का प्रधानता है। प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र की अवधारणाओं एवं विश्लेषण विधियों का प्रमुख स्रोत है, जस-मांग की लोच के विभिन्न रूप, सीमान्त आगम, सीमान्त लागत, लागत का विश्लेषण गुणक, उत्पादन फलन, मूल्य तथा मात्रा निर्धारण के सिद्धान्त, लाभ का सिद्धान्त, माँग का पूर्वानुमान, उत्पादन मॉडल, बाजार, बाजार के विभिन्न रूप, माँग की उपयोगिता एवं तटस्थता वक्र विश्लेषण आदि इन सभी का प्रयोग प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में आवश्यक समायोजनों के बाद किया जाता है। अतः दोनों में घनिष्ट सम्बन्ध है।
2. व्यावसायिक/प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र एवं समष्टि अर्थशास्त्र में सम्बन्ध (Relation between Macro Economics and Managerial Economics)-यद्यपि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र व्यष्टि अर्थशास्त्र का एक अंग है किन्तु समष्टि अर्थशास्त्र का ज्ञान प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र पर बाह्य परिस्थितियों के पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करने तथा उनका व्यावहारिक समायोजन करने में अत्यन्त आवश्यक है। समष्टि अर्थशास्त्र के घटकों-व्यापार चक्र, मौद्रिक नीति, आर्थिक नीतियाँ, राष्ट्रीय आय, कुल रोजगार, उपभोग एवं विनियोग आदि। का फर्म के भावी नियोजन एवं नीति निर्धारण में व्यापक सम्बन्ध है।
3. व्यावसायिक/प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र एवं गणित में सम्बन्ध (Relation between Mathematics and Managerial Economics)-प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में आर्थिक सिद्धान्तों के विश्लेषण एवं व्यावहारिक प्रयोग के लिए गणितीय उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। प्रबन्ध-अर्थशास्त्र में निर्णयों व नियोजन में अधिक सही जानकारी के लिए निरन्तर संक्रिया अनुसंधान का बढ़ता महत्त्व गणित के व्यापक प्रयोग का परिचायक है। माँग पूर्वानुमान, आदान-प्रदान विश्लेषण (Input-Output Analysis), उत्पादन फलन आदि में गणित का काफी प्रयोग होता है।
4. प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र एवं लेखाशास्त्र का सम्बन्ध (Relation between Managerial Economics and Accountancy)-लेखाशास्त्र फर्म के आय-व्यय का लेखा-जोखा ही नहीं वरन यह प्रबन्धकीय नियंत्रण और नियोजन का आधार भी है। लेखा-लागतों, वित्तीय लेखों और हानि-लाभ खातों के विश्लेषण से फर्म के कार्यकरण में सुधार की गुंजाइश की खोज की जा सकती है। अतः लेखाशास्त्र प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र के नीति-निर्धारण के लिये विषय-सामग्री का स्रोत है, अतः इसका प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
5. प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र एवं संक्रिया अनुसंधान (Relation between Managerial Economics and Operation Research)-आधुनिक प्रबन्ध में संक्रिया अनुसंधान का महत्त्व निर्णय प्रक्रिया में निरन्तर बढ़ रहा है। फर्म के अनुकूलतम आकार, उत्पादन साधनों के चयन की समस्या, वैकल्पिक उत्पादन विधियों में उपयुक्त विधि का चुनाव, लाभ अधिकतमकरण तथा लागत न्यूनतमरण (Profit Maximization & Cost Minimization) आदि महत्त्वपूर्ण समस्याओं के समाधान में संक्रिया अनुसंधान के उपकरणों-रेखीय प्रोग्रामिंग, इन्वेन्टरी मॉडल्स, खेल सिद्धान्त, उत्पादन फलन आदि का व्यापक प्रयोग होने से प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र का संक्रिया अनुसंधान से भी घनिष्ट सम्बन्ध है।
6. प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र का सांख्यिकी से सम्बन्ध (Relation between Managerial Economics and Statistics)-प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में माँग एवं मूल्यों का पूर्वानुमान, अनिश्चितताओं में सम्भावना की जानकारी आदि के लिए सांख्यिकी विधियों का प्रयोग किया जाता है। सम्भाव्य का सिद्धान्त (Theory of Probability) अनिश्चितताओं के वातावरण में तर्कपूर्ण निर्णय में सहायक होता है। सांख्यिकी तरीकों से आर्थिक सिद्धान्तों की जाँच करने तथा फर्म के कार्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का माप करने में सहायता मिलती है, अतः सांख्यिकी भी प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।
7. प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र का सार्वजनिक अर्थशास्त्र से सम्बन्ध (Relation between Managerial Economics and Public Economics)-आधुनिक युग में राज्य के आर्थिक क्षेत्र में बढ़ते हस्तक्षेप से व्यावसायिक फर्मे अछूती नहीं हैं। सरकार की आर्थिक नीतियाँ_व्यापारिक एवं औद्योगिक नीतियाँ, मूल्य नीति, मजदूरी नीति आदि फर्म के कार्यकलापों को प्रभावित करती हैं। अतः प्रबन्धकीय अर्थशास्त्री व्यवसाय के नीति-निर्धारण और भावी नियोजन में सार्वजनिक अर्थशास्त्र की उपेक्षा नहीं कर सकता। यही कारण है कि इन दोनों में घनिष्ठ पारस्परिक सम्बन्ध है।
स्पष्ट है कि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र का उपर्युक्त विषयों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। परिणामस्वरूप एक प्रबन्ध को इन सभी विषयों के ज्ञान तथा विश्लेषण विधियों का समन्वय करना पड़ा है। समन्वय जितना अधिक उपयुक्त एवं कुशल होगा फर्म के निर्णय, नियोजन, निर्देश, नियंत्रण और संगठन की प्रक्रिया भी उतनी ही कुशल एवं प्रभावी होगी।
अर्थशास्त्र का अन्य विषयों (शास्त्रों) से सम्बन्ध
(Relation between Business Economics or
Managerial Economics and Other Subjects)
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